उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की, जहां उन्होंने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर, विकास की संभावनाओं और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने कामले जिले के बोआसिमला में आयोजित पहले ‘संयुक्त मेगा न्योकुम युल्लो’ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।
अरुणाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत
अरुणाचल प्रदेश, जिसे ‘पूर्व का प्रदेश’ भी कहा जाता है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध जनजातीय परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां की प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, भाषा, पहनावा और त्योहार हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।
न्योकुम युल्लो: न्यिशी जनजाति का प्रमुख त्योहार
न्योकुम युल्लो न्यिशी जनजाति का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर वर्ष फरवरी महीने में मनाया जाता है। ‘न्योकुम’ शब्द का अर्थ है ‘पृथ्वी’ और ‘युल्लो’ का अर्थ है ‘प्रार्थना’। इस त्योहार के माध्यम से न्यिशी समुदाय अपने देवी-देवताओं से समृद्धि, खुशहाली और फसल की अच्छी उपज की कामना करता है। समारोह में पारंपरिक नृत्य, संगीत, खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो समुदाय की एकता और सांस्कृतिक धरोहर को सुदृढ़ करते हैं।
उपराष्ट्रपति की अरुणाचल यात्रा
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 26 फरवरी 2025 को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर पहुंचे। हवाई अड्डे पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। इसके पश्चात, वे हेलीकॉप्टर द्वारा कामले जिले के बोआसिमला के लिए रवाना हुए, जहां उन्होंने ‘संयुक्त मेगा न्योकुम युल्लो’ समारोह में भाग लिया।
संयुक्त मेगा न्योकुम युल्लो समारोह
इस वर्ष, न्योकुम युल्लो समारोह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह पहली बार था जब विभिन्न जिलों के न्यिशी समुदायों ने मिलकर ‘संयुक्त मेगा न्योकुम युल्लो’ का आयोजन किया। इस पहल का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के न्यिशी समुदायों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देना था। समारोह में पारंपरिक नृत्य, संगीत, खेल प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक प्रदर्शनों का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने भाग लिया।
उपराष्ट्रपति का संबोधन
समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अरुणाचल प्रदेश की सांस्कृतिक समृद्धि और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि ऐसे त्योहार न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे और एकता को भी प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने न्यिशी जनजाति की सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा की और इसे राष्ट्रीय धरोहर का अभिन्न अंग बताया।
अरुणाचल प्रदेश की जलविद्युत क्षमता
अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने अरुणाचल प्रदेश की प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर जलविद्युत क्षमता, पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राज्य में लगभग 50,000 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है, जो न केवल राज्य की आर्थिक प्रगति में सहायक हो सकती है, बल्कि राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। उन्होंने कहा, “अरुणाचल प्रदेश में 50,000 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है और भारत के ऊर्जा क्षेत्र के भविष्य में राज्य प्रमुख भूमिका निभा सकता है।”
जलविद्युत परियोजनाओं के लाभ
जलविद्युत परियोजनाएं नवीकरणीय ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल होती हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करती हैं। अरुणाचल प्रदेश में इन परियोजनाओं के विकास से न केवल राज्य की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति होगी, बल्कि अतिरिक्त ऊर्जा का अन्य राज्यों को निर्यात भी किया जा सकेगा। इसके अलावा, इन परियोजनाओं से स्थानीय रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे का विकास और क्षेत्र की समग्र आर्थिक प्रगति में भी योगदान मिलेगा।
पूर्वोत्तर भारत के विकास में ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की भूमिका
उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का उल्लेख किया, जो पूर्वोत्तर भारत के विकास और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने कहा, “दशकों पहले भारत सरकार ने ‘लुक ईस्ट’ नीति शुरू की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे ‘एक्ट ईस्ट’ नीति में बदल दिया और इस बात पर जोर दिया कि केवल अवलोकन करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि निर्णायक कार्रवाई की जरुरत है।”
‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत विकास कार्य
इस नीति के तहत, पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास हो रहा है। सड़क, रेल और हवाई संपर्क में सुधार, डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार, और औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में नए हवाई अड्डों का निर्माण, सड़कों और पुलों का विकास, और 4जी नेटवर्क का विस्तार इसी का हिस्सा हैं। इन प्रयासों से न केवल क्षेत्र की आंतरिक कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है, बल्कि इसे राष्ट्रीय मुख्यधारा से भी बेहतर तरीके से जोड़ा गया है।